Ad

medicinal plant farming

सतावर की खेती से बदली तकदीर

सतावर की खेती से बदली तकदीर

उत्तर प्रदेश के कासगंज में जन्मे श्याम चरण उपाध्याय अच्छी खासी नौकरी छोड़कर किसान बन गए। किसानी यूंतो कांटों भरी डगर ही होती है लेकिन उन्होंने इसके लिए कांटों वाली सतावर की खेती को ही चुना। सीमैप लखनऊ से प्रशिक्षण प्राप्त कर उन्होंने एक दशक पूर्व खेती शुरू की और पहले ही साल एक एकड़ की सतावर को पांच लाख में बेच दिया। उनकी शुरूआत और जानकारी ठीक ठाक होने के कारण वह सफलता की सीढिंयां चढ़ते गए। आज वह एक सैकड़ा किसानों के लिए मार्ग दर्शक का काम कर रहे हैं। उन्होंने एक फार्मर प्रोड्यूशर कंपनी बनाई है। मेडी एरोमा एग्रो प्रोड्यूसर कंपनी प्राईवेट लिमिटेड नामक इस किसान कंपनी में 517 सदस्य हैं। विषमुक्त खेती, रोग मुक्त जीवन के मंत्र पर काम करने वाले उपाध्याय आज अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। कासंगज की पटियाली तहसील के बहोरा गांव में जन्मे श्याम चरण उपाध्याय रीसेंट इंश्योरेंस कंपनी में एक्जीक्यूटिव आफीसर थे। उन्हें वेतन भी 50 हजार के पार मिलता था लेकिन उनकी आत्मा गांव में बसी थी। वह नौकरी के दौरान भी गांव से अपना मोह नहीं छोड़ पाए। उन्होंने यहां  2007 तक काम किया। इसके बाद नौकरी छोड़कर गांव चले आए। गांव आकर उन्होंने खेती में कुछ लीक से हटकर करने का मन बनाया। उन्होंने परंपरागत खेती के अलावा कुछ नया करने की धुन को साकार करने की दिशा में काम शुरू कर दिया। इस काम में उनकी मदद उनकी शिक्षा बायो से बीएससी एवं बाराबंकी के जेपी श्रीवास्तव ने की। वह ओषधीय पौधों की खेती का गुड़ा भाग लगाकर मन पक्का कर चुके थे। सगंधीय पौध संस्थान, सीमैप लखनउू से प्रशिक्षण प्राप्त कर वक काम में जुट गए।

क्या है सतावर की खेती का गणित

श्री उपाध्याय ने बाताया कि एक एकड में सतावर के 11 हजार पौधे लगते हैं। हर पौधे में गीली जड़ दो से पांच किलोग्राम निकलती है। सूखने के बाद यह न्यूनतम 15 प्रतिशत बजनी रहने पर भी 300 ग्राम प्रति पौधे के हिसाब से बैठ जाती है। उनकी एक एकड़ जमीन में उन्हें करीब 30 कुंतल सूखी सतावर प्राप्त हुई। सतावर की कीमत 200 से 500 रुपए प्रति किलोग्राम तक बिक जाती है। उन्होंने पहले साल अपनी पूूरी फसल एक औषधीय फसलों की खरीद करने वाले को पांच लाख में बेच दी। खुदाई से लेकर प्रोसेसिंग का सारा जिम्मा उन्हीं का था।

ये भी पढ़ें:
किसान इस औषधीय फसल से कम समय में अधिक लाभ उठा सकते हैं
इसके बाद उन्होंने खस बटीवर, पामारोजा, सतावर, स्टीविया, अश्वगंधा, केमोमाइल, लेमनग्रास आदि की खेती कर रहे हैं। किसी भी औषधीय फसल को लगाने से पूर्व वह बाजार की मांग का विशेष ध्यान रखते हैं। बाजार में जिन चीजों की मांग ठीक ठाक हो उन्हें ही वह प्राथमिकता से लगाते हैं।  अब वह कृषक शसक्तीकरण परियोजना में अन्य किसानों को जोड रहे हैं। बंजर में चमन खिलाएंगे श्री उपाध्याय का सपना है कि धान-गेहूं फसल चक्र के चलते जमीन खराब हो रही है। बंजर होते खेतों से भी वह किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं। बंजर में खस अच्छी लगती है। वह किसानों को खस की खेती करना सिखा रहे हैं। इससे उनकी आय होगी। साथ ही खेती की जमीन भी धीरे धीरे सुधर जाएगी। वह बताते हैं कि ज्यातार किसान जिस खेती को करते हैं उससे अच्छी आय नहीं हो सकता। इस लिए किसानों को लीक से हटकर नई खेती को अपनाना चाहिए। पहली बार में इसे ज्यादा न करें। बाजार आदि की पूरी जानकारी होने के बाद ही काम को धीरे धीरे बढ़ाएं।
इस फूल की खेती से किसान कम समय में अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं

इस फूल की खेती से किसान कम समय में अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं

आजकल किसान फूलों की खेती करके काफी ज्यादा आय करते हैं। गुलखैरा का फूल तकरीबन 10,000 रुपये क्विंटल तक के हिसाब से बिकता है। किसान एक बीघे में कम से कम 5 से 6 क्विंटल फूल बड़ी आसानी से उत्पादन कर सकते हैं। वो भी बाकी फसलों की पैदावार करते हुए। आज के समय में किसान पारंपरिक खेती की लीक से हट कर अन्य विभिन्न प्रकार के फलों, फूलों और मसालों की खेती कर रहे हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही फूल के विषय में बताने वाले हैं, जिसकी खेती यदि आपने करते हैं, तो गत कुछ ही माह में मालामाल हो सकते हैं। बतादें, कि हम जिस फूल के बारे में बात कर रहे हैं, यह कोई साधारण फूल नहीं है। यह एक ऐसा फूल है, जिसके विभिन्न औषधीय लाभ होते हैं। विभिन्न प्रकार की बीमारियों का उपचार करने में इस फूल का उपयोग होता है। आइए अब इस फूल के बारे में जानते हैं।

गुलखैरा के फूल की क्या-क्या विशेषता होती है

दरअसल, हम जिस फूल के विषय में बात कर रहे हैं, उस फूल का नाम गुलखैरा है। बतादें कि किसान भाई इस फूल की खेती कर के काफी मोटी आमदनी कर सकते हैं। इस फूल की फसल की सबसे विशेष बात यह है, कि इसे किसी भी फसल के साथ किसान उगा सकते हैं। उसके बाद इसे बाजार में बेच कर अच्छी-खासी आमदनी कर सकते हैं। दरअसल, इस फूल का मूल रूप से सर्वाधिक उपयोग ओषधि निर्मित करने हेतु किया जाता है। ये भी देखें: इस औषधीय गुणों वाले बोगनविलिया फूल की खेती से होगी अच्छी-खासी कमाई

गुलखैरा का फूल कितने रुपये प्रति क्विंटल बिकता है

मीडिया एजेंसियों की खबरों के अनुसार, गुलखैरा का फूल तकरीबन 10,000 रुपये क्विंटल तक बेचा जाता है। बतादें, कि एक बीघे में कम से कम आप 5 से 6 क्विंटल फूल बड़ी आसानी से उत्पादित कर सकते हैं, वह भी बाकी फसलों के समेत। इस फूल की एक और सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि इसकी एक बार बुआई कर लेने के उपरांत आपको दूसरी बार बीज बाजार से खरीदने की जरुरत नहीं पड़ेगी। अप्रैल से मई के मध्य यह फसल पककर तैयार हो जाती है।

गुलखैरा के फूल का उपयोग किस प्रकार की दवाई बनाने में किया जाता है

गुलखैरा के फूल का उपयोग यूनानी औषधियां तैयार करने में किया जाता है। इसके साथ ही मर्दाना शक्ति के लिए भी इस फूल से दवाई तैयार की जाती है। बुखार, खांसी और विभिन्न प्रकार की वायरस वाले रोगों के उपचार के लिए भी इस फूल का इस्तेमाल किया जाता है। इस समय इस फूल की खेती उत्तर प्रदेश के उन्नाव, कन्नौज और हरदोई में अधिक होती है।